केंद्र सरकार ने कानूनों की नई परिभाषा तय करने वाले तीन बिल लोकसभा (Lok Sabha) में पेश किए। सरकार ने इंडियन पीनल कोड (IPC), क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट (IAA) को खत्म करने का प्रस्ताव पेश किया। जबकि इनकी जगह भारतीय न्याय संहिता बिल, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल और भारतीय साक्ष्य अधिनियम बिल को स्टैंडिंग कमिटी के पास भेज दिया गया। इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री (Union Home Minister) अमित शाह ने कहा कि, 'इन तीनों कानूनों को बदलकर इनकी जगह जो तीन नए कानून बनेंगे उनकी आत्मा होगी भारत के नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए सारे अधिकार जो मिले हैं इसकी सुरक्षा।''
4 साल का मंथन और 158 बैठकों के बाद अमित शाह लेकर आए नए कानून
गृह मंत्री अमित शाह ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में किए गए बदलावों को अंग्रेजों के बनाए कानूनों से आजाद करने का हथियार बताया। उन्होंने कहा कि, 1860 से लेकर 2023 तक अंग्रेज पार्लियामेंट के बनाए हुए कानून के आधार पर इस देश की क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम चलती रही, इसकी जगह भारतीय आत्मा के साथ ये तीन कानून अब प्रस्थापित होंगे। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बदलने में काफी वक्त लगा। खुद अमित शाह ने अगस्त 2019 में सभी अहम संस्थाओं को चिट्ठी लिखी। सबके साथ चर्चा की। तब जाकर इसमें बदलाव किए गए। गृह मंत्री ने बताया कि, 4 साल तक इस पर गहन विचार-विमर्श हुआ है, 158 बैठकें कीं। गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक कानूनों का मकसद सभी को न्याय देना है, दंड देना नहीं।
अब कोई अपराधी बच नहीं पाएगा, जो जुर्म करेगा वो सज़ा ज़रूर पाएगा
लंबी चर्चा और सुझावों के बाद गृह मंत्री अमित शाह ये विधेयक लेकर आए। खास बात ये कि इनके ज़रिए देर से मिलने वाले न्याय की अवधि को सरकार ने कम करने का प्रयास किया गया है ताकि लोगों को अदालतों के चक्कर ना लगाने पड़ें। इसके लिए नए कानूनों में दस्तावेज़ों और साक्ष्यों की परिभाषा बदल दी गई है। आधुनिक तकनीकों को समाहित किया गया है। अब इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ई-मेल, सर्वेलांस, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, लैपटॉप, SMS, वेबसाइट, लोकेशन, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मेसेज को कानूनी वैद्यता दे दी गई है। इसके अलावा FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट, और चार्जशीट से जजमेंट तक सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान नए कानूनों के अंदर रखा गया है। किसी निर्दोष को फंसाया ना जा सके इसके लिए सर्च और ज़ब्ती के दौरान वीडियोग्राफी (Videography) को मैनडेट्री कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी।
राजद्रोह की धारा खत्म होगी, दाऊद जैसे भगोड़े अपराधियों का होगा पूरा हिसाब
केंद्र सरकार ने नए कानूनों के ज़रिए दोष सिद्धी यानि कनविक्शन के अनुपात को 90 प्रतिशत तक लेकर जाने का लक्ष्य रखा है, जिसमें फॉरेंसिक टीम्स (Forensic Team) को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (Criminal Justice System) में किए गए बदलावों के तहत 7 साल या उससे अधिक की सज़ा जिन धाराओं में है उनमें क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का जाना ज़रूरी कर दिया गया है। इन सबके अलावा...
- राजद्रोह कानून को पूरी तरह से खत्म करने का प्रावधान
- झूठी पहचान बताकर शादी करने वाले को कठोर सजा का प्रावधान
- मॉब लिंचिंग के लिए 7 साल की सजा, आजीवन कारावास और मृत्युदंड का प्रावधान
- भगोड़ों का गैरहाज़िरी में ट्रायल करने और उन्हें सजा देने का भी प्रावधान है
- गैंग रेप के सभी मामलों में 20 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है
- 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान भी किया गया है