बद्रीनाथ धाम मा लग ना जाउ मवसी घाम…इन पंक्तियों का न हर कोई अर्थ समझ सकता है, ना ही मर्म। सिर्फ पहाड़वासी ही इन पंक्तियों का मतलब, इनमें छिपी पीड़ा और मौत की मुनादी को सुन सकता है, समझ सकता है। बद्रीनाथ धाम में जो कुछ हो रहा है, सामान्य चश्मे से वो विकास और विस्तारीकरण है। मगर पहाड़ की नजर से देखेंगे तो सिर्फ जमीन नहीं, बद्रीनाथ धाम की जड़ें खुद रही हैं।
बद्रीनाथ धाम में डरा रहीं दरारें, दुकानें की गईं शिफ्ट
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) में मास्टर प्लान (Master Plan) के तहत रिवर फ्रंट डेवलपमेंट (River Front Development) का काम हो रहा है। यानि कि खूब जेसीबी (JCB) गरज रही है। बिना भू्गर्भीय जांच और अवैज्ञानिक तरीके से हो रही तोड़फोड़ ने बद्रीनाथ धाम को इतनी पीड़ा दी, कि उस दर्द ने मोटी-मोटी दरारों को जन्म दे दिया। बद्रीनाथ धाम की बाजार गली में दरारें इतनी बढ़ गई, कि मलबा अब दरकते हुए, नदी में जा रहा है। धाम के तीर्थ पुरोहितों ने जब इन दरारों को देखा तो इनसे दहशत झांक रही थी। खबर प्रशासन तक पहुंची तो फौरी तौर पर दोनों ओर दीवारें खड़ी कर रास्ता बंद कर दिया गया। दुकानें वहां से शिफ्ट करा दी गई। श्रद्धालु और स्थानीय लोग अब पंडितों के मोहल्ले (पंचभैया मोहल्ला) से बामणी गांव की ओर से घूमते हुए कुबेर गली से आना-जाना कर रहे हैं।
बरसात में बद्रीनाथ धाम का क्या होगा?
दुकानें खाली कराने वाली वैकल्पिक व्यवस्था फौरी तौर पर जान-माल के नुकसान से बचाने के लिए तो ठीक है। मगर भू-घंसाव ऐसे ही बढ़ता रहा तो क्या इसके ठीक ऊपर बसे उस पंचभैया मोहल्ले को खतरा नहीं होगा, जिसे अभी वैकल्पिक रास्ते के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है? यहां 12 से 15 परिवार रहते हैं, जो दहशत में हैं। इन लोगों का कहना है कि वो रातों को सो नहीं पा रहे हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए। साथ ही इस बात से भी घबराए हुए हैं कि तोड़फोड़ यूं ही चलती रही तो बरसात के दिनों में क्या होगा? लोग शासन प्रशासन से सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं।
धाम में इन दिनों यही चर्चा है कि अब आगे क्या होगा? धाम का भी और तीर्थ पुरोहितों का भी। वो तीर्थ पुरोहित जिनके पुरखे इसी बद्रीनाथ धाम में खप गए। उन्हीं पंडा-पुरखों ने बद्रीनाथ धाम की ख्याति को देश-दुनिया में मशहूर किया। देश भर में एक शहर से दूसरे शहर लंबी-लंबी यात्राएं कर लोगों के घर जा-जाकर बताया बद्रीनाथ धाम की महिमा क्या है।
क्या कहती है साल 1974 में बनी कमेटी की रिपोर्ट
बद्रीनाथ धाम में गुजर-बरस करने वाले तीर्थ पुरोहितों के पुरखे जिन्हें सामान्य भाषा में पंडा कहते हैं। वो कहते थे कि बद्रीनाथ धाम की बनावट ही उसकी सुरक्षा का कवच है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुरखों की इसी बात पर 1974 में बनी कमेटी ने भी मुहर लगाई थी। साल 1974 में तत्कालीन वित्त मंत्री एन डी तिवारी (ND Tiwari) जो कि बाद में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे, उनकी अध्यक्षता में एक कमेटी बनी थी। इस कमेटी ने उद्योगपति वसंत कुमार बिरला की बेटी के नाम से प्रस्तावित निर्माण को सिरे से खारिज कर दिया था। इसे अनुचित बताया था। कमेटी ने खबरदार किया था कि अगर निर्माण हुआ तो भूगर्भीय और पर्यावरणीय खतरों को झेलना पड़ सकता है। कमेटी में सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली समेत कई दिग्गज और पर्यावरणविद शामिल थे। इस कमेटी ने ये तक सिफारिश की थी कि भविष्य में भी बद्रीनाथ के स्वरूप से साथ छेड़छाड़ न की जाए। इससे तप्त कुंड और जलधाराओं के सूखने की भी आशंका होगी।
ड्रीम प्रोजेक्ट निकाल देगा बद्रीनाथ धाम का दम ?
इस कमेटी की रिपोर्ट के बाद बद्रीनाथ धाम का अस्तित्व वैसा ही बलवान रहा, जैसी नींव पूर्वजों ने रखी थी। मगर फिर बरसों बाद पीएम मोदी (PM Modi) ने एक सपना देखा। काशी विश्वनाथ जैसे तमाम मंदिरों की तरह बद्रीनाथ धाम का भी कायाकल्प हो। न जाम का झाम हो, ऑल वेदर रोड (All Weather Road) श्रद्धालुओं की यात्रा को रॉकेट बना दें। बद्रीनाथ धाम में एक साथ लाखों लाख श्रद्धालु भी आ जाएं तो धाम के माथे पर सिकन न हो। पीएम मोदी (PM Modi) का ड्रीम प्रोजेक्ट (Dream Project) सामने था, जिसे सच उत्तराखंड सरकार (Uttarakhand Government) को करना था। मगर क्या पहाड़ की पुरानी रिपोर्ट, यहां की अति संवेदनशीलता, पर्यावरणविदों की राय को उस ड्रीम प्रोजेक्ट के साथ रखा गया? बद्रीनाथ धाम को ऐसी बनावट क्यों दी गई, आस-पास घर सटाकर क्यों बनाए गए इसके बारे में बताया गया? क्या विस्तृत भू-गर्भीय जांच चली, पहाड़ को पढ़ने की कोशिश हुई?
स्थानीय पुरोहितों को नहीं खबर, तोड़ दिए गए उनके घर
अगर ये सब हुआ होता तो क्या उन तीर्थ पुरोहितों को पता न चलता, जिनकी कपाट बंद होने के बाद भी आत्मा वहीं बसती है, सिर्फ शरीर से वो 6 महीने के लिए दूसरे घर लौटते हैं। इस इंतजार में 6 महीने बाद फिर अपनी जड़ों से जुड़ना है। जरा सोचिए, आप कहीं गए हों, वहां से घर लौटे और वहां आपको अपना घर न मिले तो? सुनने में ये कुछ अजीब सा लगे, मगर ये वो स्याह सच है। जो बद्रीनाथ धाम के पुरोहित भुगत रहे हैं। बद्रीनाथ धाम के विस्तारीकरण ने उनके हक-हकूक का हरण कर लिया है। धाम के पुरोहित बताते हैं कि कपाट खुलने के बाद जब बद्रीनाथ धाम आए तो किसी को उसका घर नहीं मिला, तो किसी को दुकान नहीं दिखी। छानबीन की तो कह दिया गया, घर और दुकानों को तोड़ा गया है, मुआवजा मिल जाएगा। इसी अनियोजित तोड़फोड़, पंडा-पुरोहितों की वंशावलियों को तहस नहस करने का नतीजा है कि बद्रीनाथ धाम आज जख्मी है और बड़ी त्रासदी को न्योता दे रहा है।
ये कहावत तो कुछ हद हजम कर ली जाती है कि हर विकास की एक कीमत होती है। मगर विकास का जोर जब भीषण शोर बन जाए तो बहरा ही करता है। ये समझना होगा कि आस्था और अपनेपन में लिपटा ये एक धाम है। इसे कमाई की ऑटोमैटिक मशीन बनाने की कोशिश कहीं केदारनाथ पार्ट-2 न कर दे?