G-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक गुरुवार (2 मार्च) से दिल्ली में शुरु होने जा रही है। इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए कई देशों के विदेश मंत्री भारत पहुंच गए हैं, जबकि कईयों का आना अभी भी बाकी है। रूस के विदेश के मंत्री सर्गेई लवारोव दिल्ली पहुंच गए हैं। सर्गेई लवारोव का दिल्ली पहुंचने पर स्वागत किया गया। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने उनकी अगवानी की। जानकारी के मुताबिक विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले सर्गेई लवारोव की भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी होगी। संभावना है कि इस मुलाकात में यूक्रेन युद्ध को लेकर चर्चा होगी। जबकि, आपसी सहयोग के मुद्दों पर भी बातचीत भी होगी। रूस के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर भारत की अध्यक्षता में शुरु हो रहे जी-20 समिट के सफल होने के साथ ये उम्मीद जताई है कि इस सम्मेलन में तमाम वैश्विक मुद्दों पर सकारात्मक संवाद होगा।
जापान और दक्षिण कोरिया ने दिया भारत को झटका !
दो दिन की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर और दूसरे देशों के विदेश मंत्री वैश्विक चुनौतियों और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अपने विचार साझा करेंगे। ब्राजील के विदेश मंत्री माउरो विइइरा, मॉरिशस के विदेश मंत्री अलान गानू, तुर्किए के मैवलुट कावुसोगलू और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पेनी वांग दिल्ली पहुंच गए हैं। चीन के नए विदेश मंत्री किन गैंग 2 मार्च को दिल्ली पहुंचेंगे। जासूसी गुब्बारे के को लेकर छिड़े विवाद के बाद पहली बार चीन और अमेरिका के विदेश मंत्री आमने-सामने होंगे। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं। हालांकि, जापान सरकार ने ऐलान किया है कि भारत में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में विदेश मंत्री योशिमासा हयाशी हिस्सा नहीं लेंगे। हयाशी की जगह विदेश राज्य मंत्री केंजी यमादा दिल्ली आएंगे। यही नहीं दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्र ने भी घरेलू जिम्मेदारियों को कारण बताते हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है।
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है ?
हाल के वर्षों में भारत खुद को ग्लोबल साउथ के रूप में जाने जाने वाले विकासशील देशों की अग्रणी आवाज के रूप में स्थापित कर रहा है। अब, G20 के अध्यक्ष के रूप में भारत के पास इससे बड़ा मंच नहीं हो सकता। दुनिया के 19 सबसे धनी देशों और यूरोपीय संघ के पास वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 85% और इसकी आबादी का दो-तिहाई हिस्सा है। लेकिन जैसा कि इसके विदेश मंत्री दिल्ली में मिलते हैं, कोई भी व्यापक समझौते जो भारत को देने की उम्मीद है, वह काफी हद तक एक प्रमुख कारक पर निर्भर करेगा, और वो है यूक्रेन युद्ध। पिछली शरद ऋतु में जब G20 के नेता इंडोनेशिया की अध्यक्षता में बाली में एकत्रित हुए थे, तो रूसी मिसाइलों ने यूक्रेन के बुनियादी ढांचे के प्रमुख लक्ष्यों को निशाना बनाया था। जिसके बाद संयुक्त विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से मतभेद दिखाई दिए थे। भारत, चीन और रूस कथित तौर पर आक्रमण की खुले तौर पर आलोचना से सहमत नहीं थे। तब से बहुत कुछ बदला नहीं है। शांति वार्ता के कोई संकेत नहीं होने के साथ युद्ध जारी है, दुनिया उतनी ही विभाजित है। यही नहीं कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अभी भी उथल-पुथल में हैं। ऐसे में दुनिया के 20 शक्तिशाली राष्ट्र तमाम मुद्दों पर एकमत होंगे, इसकी संभावना बहुत कम है।