Thursday, November 21, 2024
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Opposition’s Double Standard on Crime against Women: मणिपुर पर हल्ला मचाने वालों के मुंह में जमी दही, बंगाल में आदिवासी महिलाओं के साथ क्रूरता पर विपक्ष की खामोशी, भारतीय राजनीति का दोगला चरित्र

मणिपुर (Manipur) में कुकी समुदाय (Kuki Community) की महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने और उनके साथ गैंगरेप की घटना पर विपक्षी दलों (Opposition Parties) ने जमकर बवाल काटा। संसद के दोनों सदनों को चलने तक नहीं दिया। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह (N Biren Singh) से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) तक से इस्तीफा मांगा गया। ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर  भी खुद को तथाकथित बौद्धिक प्रजाति का अगुआ मानने वाले छातीकूटो गैंग ने भी खूब एजेंडा चलाया। लेकिन, अब मुस्लिम तुष्टीकरण के बलबूते पिछले करीब 15 सालों से पश्चिम बंगाल (West Bengal) पर राज कर रही ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के शासन में कुछ ऐसा हुआ है कि छातीकूटो गैंग वाले अंडरग्राउंड हो गए हैं और विपक्षी दलों के मुंह पर पट्टी बंध गई है। 
महिलाओं को अर्धनग्न करने का वीडियो

ममता के राज में आदिवासी महिलाओं को नंगा कर पीटा

ट्विटर से लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मणिपुर की घटना को लेकर दहाड़े मारने वाले ज्ञानवीरों, बयानवीरों, और समाज में भद्रता के कथित ठेकेदारों ने बंगाल में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाने के मामले में चुप्पी साध रखी है। पश्चिम बंगाल के मालदा (Malda) में में भीड़ ने दो महिलाओं को सरेआम पीटा, फिर उन्हें अर्धनग्न कर दिया। बताया जा रहा है कि ये घटना 19 जुलाई की है, जबकि इसका वीडियो 22 जुलाई को सामने आया। 

मालदा में महिलाओं से बर्बरता पर विपक्ष की चुप्पी

बीजेपी आईटी सेल (BJP IT Cell) के प्रमुख अमित मालवीय (Amit Malviya) द्वारा शेयर किए गए इस वीडियो में देखा जा सकता है कि महिलाओं की भीड़ ने दो महिलाओं को घेरा हुआ है। भीड़ में शामिल महिलाएं उनके बाल खींचकर चप्पलों से पिटाई कर रही हैं। इसके बाद भी दिल नहीं भरता तो उन दो महिलाओं के कपड़े फाड़ दिए जाते हैं। बंगाल पुलिस के तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकि, अमित मालवीय के मुताबिक,
- महिलाओं की पिटाई और उन्हें अर्धनग्न करने का ये मामला पश्चिम बंगाल के मालदा के बामनगोला पुलिस स्टेशन का है। 
- जिन दो महिलाओं की पिटाई हुई और अर्धग्न किया गया वो आदिवासी हैं। 

बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिए?

इतना सब होने के बाद भी विपक्षी दलों और छातीकूटो गैंग के प्रतिनिधियों की ज़ुबान से एक शब्द नहीं निकला है। ना ही माननीय सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संज्ञान लिया है। वो सुप्रीम कोर्ट जो मणिपुर मामले में फौरन सरकार को आड़े हाथों ले लेती है, लेकिन पंचायत चुनावों (Panchayat Elections) से लेकर बेहद खराब कानून व्यवस्था के मामले में पश्चिम बंगाल सरकार से एक सवाल तक नहीं पूछती। हुगली ज़िले की बीजेपी (BJP) सांसद लॉकेट चटर्जी (Locket Chatterjee) का मीडिया के सामने रोना और टीएमसी (TMC) कार्यकर्ता द्वारा एक बीजेपी उम्मीदवार के यौन उत्पीड़न की कहानी सुनाने को तवज्जो नहीं दी जाती, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो केंद्र की सत्ताधारी पार्टी से ताल्लुक रखती है। 
मणिपुर हो या पश्चिम बंगाल, राजस्थान (Rajasthan) हो या छत्तीसगढ़ (Chattisgarh), अगर कानून व्यवस्था का माखौल उड़ाया जाता है तो विपक्षी दलों, व्यक्ति विशेष से नफरत करने वालों, एजेंडाधारियों और माननीय सुप्रीम कोर्ट को समान प्रतिक्रिया देनी चाहिए। सिर्फ केंद्र सरकार और बीजेपी शासित प्रदेश सरकारों को घेरने और वाह-वाही बटोरने के लिए काम नहीं करना चाहिए। जनता सबकुछ समझती है। जानता को पता है कि किस तरह पार्टियां अपनी सुविधा के लिए मुद्दे चुनती हैं और उनका इस्तेमाल अपने वोटबैंक में इज़ाफा करने के लिए करती हैं। 

अशोक गहलोत को अपने ही मंत्रियों ने दिखाया आईना, बौखलाए मुख्यमंत्री ने चलाया हंटर

राजस्थान में तो इतने बुरे हालात हैं कि खुद वहां के मंत्री और विधायक पनाह मांग रहे हैं। ओसिया से कांग्रेस (Congress) विधायक दिव्या मदेरणा (Divya Maderna) ने प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर कहा कि, ''मैं क्या बताऊं मैं तो खुद ही सुरक्षित नहीं हूं। मुझ पर पुलिस सुरक्षा में हमला हो जाता है. मुझ पर हमला करने वाले आरोपी को आज तक पकड़ा नहीं गया है।'' वहीं राजस्थान में महिला सुरक्षा पर सवाल उठाने वाले राजेंद्र गुढ़ा (Rajendra Singh Gudha) को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया है। गुढ़ा ने शुक्रवार को ही विधानसभा में राजस्थान में महिला सुरक्षा पर अपनी ही सरकार को असफल बताया था और कहा था कि, ''मणिपुर के बदले हमें अपने गिरेबां में झांकने की जरूरत है. सरकार ने गुढ़ा के बयान को घोर अनुशासनहीनता माना है।'' 
अब सवाल ये है कि क्या खुद को स्वतंत्र स्तंभकार, समाजिक कार्यकर्ता और महाज्ञानी ये कहने का साहस जुटा पाएंगे कि गहलोत सरकार (कांग्रेस सरकार) में कानून का मज़ाक उड़ाया जा रहा है, और इसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को गहलोत महोदय सज़ा दे रहे हैं। छाती पीटने और I.N.D.I.A वालों को ये मुद्दा सूट नहीं करेगा, इसलिए वो खामोश ही रहेंगे। 

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