महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का वर्णन है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महिमा है। ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। कहा जाता है कि महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पालनहार नंद जी से आठ पीढ़ी पहले हुई थी। जबकि, शिवपुराण के मुताबिक मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठा नन्द से आठ पीढ़ी पूर्व एक गोप बालक द्वारा की गई थी।
इस्लामी आक्रांता भी महाकाल मंदिर का कुछ बिगाड़ नहीं पाए
उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं को नष्ट करने की कई बार कोशिश हुई। 1235 ई. में इल्तुत्मिश ने इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस कर दिया था। उस दौरान यहां कई श्रद्धालुओं का कत्ल किया गया। मंदिर में स्थापित मूर्तियों को खंडित कर दिया। इल्तुतमिश ने आदेश दिया था कि मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर देना है। तब पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड में छिपा दिया था। करीब 500 साल तक महाकाल कुंड में ही रहे। हालांकि, धार के राजा देपालदेव ने इल्तुतमिश के हमले को रोकने की कोशिश की। वो बड़ी संख्या में सेना लेकर उज्जैन के लिए निकल पड़े। हालांकि, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर तोड़ दिया था। लिहाज़ा, बाद में देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। देपालदेव ही थे जिन्होंने इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण कराया।
महाकाल मंदिर के कितने हिस्से, कहां है दिव्य ज्योतिर्लिंग ?
महाकाल मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। मंदिर के सबसे निचले भाग में दिव्य ज्योतिर्लिंग है। मध्य में ओंकारेश्वर का शिवलिंग है। जबकि, सबसे ऊपर वाले भाग पर साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलने वाला नागचंद्रेश्वर मंदिर है। महाकाल मंदिर को पृथ्वी का सेंटर पाइंट या नाभि कहा जाता है, क्योंकि कर्क रेखा शिवलिंग के ठीक ऊपर से गुजरी है।