भू-बैकुंठ कहे जाने वाले बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) के कपाट मंत्रोच्चार और विधिविधान के साथ भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। गुरुवार सुबह 7 बजकर 10 मिनट के महाशुभ मुहूर्त पर भगवान बद्रीविशाल (Badrivishal) अपने धाम में विराजमान हो गए। इस मौके पर बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) को 15 क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया।
सुबह से ही बद्रीनाथ धाम में बर्फबारी (snowfall in badrinath dham) होती रही, बावजूद इसके सैकड़ों श्रद्धालु धाम के बाहर जुटे रहे और इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने। कपाट खुलने के दौरान आर्मी बैंड (Army Band) धुनें बजाता रहा और लोगों ने जय बद्री विशाल के नारे लगाते रहे। कपाट खुलने के बाद चारों धामों में अब 6 महीने तक यात्रा चलती रहेगी
बद्रीनाथ धाम और भगवान विष्णु की रोचक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेतायुग में दम्बोद्धाव नामक एक राक्षस हुआ करता था, जिसे सूर्यदेव की कड़ी तपस्या करके वरदान स्वरूप हजार कवच मिले थे, इसीलिए उसका नाम सहस्रकवच (Sahasrakavach) पड़ गया था। दम्बोद्धाव राक्षस को कवचों से इतनी शक्ति मिल गई कि वो उसने धरती पर अत्याचार शुरू कर दिए। पूरी धरती उसके अत्याचारों से त्राहिमाम करने लगी तो सभी देवता भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के पास गए। दरअसल सहस्रकवच नाम के राक्षस का एक कवच वही तोड़ सकता था, जिसने हजार वर्ष की तपस्या पूरी की हो।
इसीलिए पहले खुलते हैं केदारनाथ धाम के कपाट
सहस्रकवच के अत्याचारों का समाधान तलाशने के लिए भगवान विष्णु संपूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमने लगे। तभी भगवान बद्रीनाथ धाम पहुंचे तो उन्हें मालूम चला कि इस जगह पर एक दिन तपस्या करने से हजार वर्ष की तपस्या का फल मिलता है। परन्तु इस जगह पर भगवान शिव पहले से विराजमान थे। इस जगह को भगवान से प्राप्त करने के लिए विष्णु जी ने लीला रची और छोटे से बालक का रूप धारण करके ऋषि गंगा के समीप एक पत्थर पर लेटकर रोने लगे। पार्वती जी ने उनका रोना सुना तो ममतावश वह उस बच्चे को अपनी गोद में उठाने लगीं।
जैसे ही माता पार्वती ने बच्चे को गोद में उठाया। विष्णु भगवान अपने असली रूप में आ गए और बोले कि आपने मुझे अब अपना बेटा माना है। अब मुझे ये जगह भेंट स्वरूप दे दीजिए। तत्पश्चात भगवान विष्णु को बद्रीनाथ धाम सौंपकर भोलेनाथ जाने लगे तो भगवान विष्णु ने कहा कि उन्हें बेटे के रूप में ये जगह मिली है। ऐसे में जो भी श्रद्धालु यहां उनके दर्शनों के लिए आएगा। वो पहले उनके पिता स्वरूप भगवान शिव के दर्शन करेगा। यानि बद्रीनाथ धाम की यात्रा से पहले केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) की यात्रा करनी होगी। इसीलिए केदारनाथ धाम के कपाट भी बद्रीनाथ धाम के कपाट से पहले खुलते है।
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कर्ण और कवच की कथा
भगवान शिव से बद्रीनाथ धाम मिलने के बाद भगवान विष्णु ने नर और नारायण (Nar and Narayan) दो रूप लिए और तपस्या करनी आरंभ की। एक दिन तपस्या करके सहस्रकवच से नर युद्ध करते। दूसरे दिन नारायण युद्ध करते। इस तरह भगवान प्रतिदिन सहस्रकवच का एक-एक कवच तोड़ते गए। जब सहस्रकवच का 999 कवच टूट गए तो वो भगवान के चरणों में गिर पड़ा और माफी मांगने लगा। तत्पश्चात भगवान ने क्षमा कर दिया और उसके उद्धारस्वरूप उसे अगले जन्म में कर्ण (Karan) के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया।