बिहार में जातीय जनगणना की तेज होती धमक के बीच जाति के नाम पर सियासी लहर पैदा करने का अंदेशा तो सबको था, लेकिन रामचरित मानस जैसे धार्मिक ग्रंथ की चौपाइयों के शाब्दिक अर्थों की आड़ में इसे इस तरह तूल दिया जाएगा, ये शायद ही किसी ने सोचा होगा। नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के 15वें दीक्षांत समारोह में बिहार के शिक्षा मंत्री और RJD नेता चंद्रशेखर जब मंच पर छात्रों के सामने खड़े हुए तो उन्होंने मोहब्बत का पैग़ाम देने का दावा किया। लेकिन, इस दावे के साथ उन्होंने रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों के शाब्दिक अनुवाद कर खलबली मचा दी।
”जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा। जे बरनाधम, बन में अधम कौन कौन लोग हैं… जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।”
”अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए। यानी कि अधम जाति में यानी नीच जाति के लोग विद्या पाकर के जहरीला हो जाते हैं, कैसा? जैसा कि दूध पीने के बाद सांप हो जाता है।”
रामचरित मानस में गरुड़ और काक भुशुंडि के संवाद को अलग संदर्भ में बताकर बिहार के शिक्षा मंत्री ने जातीय जनगणना से बन रहे माहौल में नए विवाद का कंकड़ उछालने की कोशिश की। बिहार के शिक्षा मंत्री ने एक ही लाइन में मनुस्मृति, रामचरितमानस और RSS के दूसरे प्रमुख रहे एम. एस. गोलवरकर की किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ को रख दिया। तीनों को एक ही सांस में नफ़रत का ग्रंथ क़रार दिया। चंद्रशेखर ने कहा कि…
”ये जो ग्रंथ हैं नफरत को बोने वाले, एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस और तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का बंच ऑफ थॉट। ये दुनिया को हमारे देश को और समाज को नफरत में बांटती है। तुलसीदास जी ने लिखा रामचरित मानस। उसके उत्तरकांड में कितनी बात कही गई। पूजहि विप्र सकल गुण हीना । शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा।”
रामचरितमानस के जानकार भले ही यहां विप्र का मतलब आत्मा का बोध पाने वाले आत्मज्ञानी व्यक्ति से बताएं, और शुद्र वेद प्रवीणा से ग्रंथों का मर्म जाने बगैर प्रवचन करने वाला। लेकिन राजनीति चमकाने के चक्कर में शिक्षा मंत्री ने अपने सिर पर विवादों की पगड़ी बांध ली।
चंद्रशेखर के खिलाफ भड़का संत समाज का गुस्सा
चंद्रशेखर को जो कहना था वो कह गए। वो अपने बयान पर अड़े हुए भी हैं। लेकिन उनके बयान पर सियासी तूफान से पहले धार्मिक हलकों में हलचल तेज़ हो गई। राम की नगरी अयोध्या से फतवे के अंदाज में एक फरमान आ गया। तपस्वी छावनी के महंत परमहंस दास ने कहा कि…
”मैं इनके ऊपर विधिक कार्रवाई की मांग करता हूं कि इनको मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए। अगर एक हफ्ते के अंदर ऐसा नहीं होता है तो फिर मैं 10 करोड़ रुपये का इनाम रखता हूं कि जो बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की जिह्वा काटेगा उसको मैं 10 करोड़ रुपये पुरस्कार दूंगा।”
नीतीश बाबू बोले… ‘हमें कुछ पता ही नहीं है’
श्रीरामचरितमानस पर ऊंगली उठने पर संत समाज के तुगलकी फरमान को कोई जायज नहीं ठहरा सकता। लेकिन, बिहार के शिक्षा मंत्री के बयान को भी सही नहीं कहा जा सकता। जिस रामचरितमानस में जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी… जैसी चौपाई है, उस रामचरित मानस की चौपाइयों के ऐसे शाब्दिक अर्थ बताए जाने और जातीय जनगणना के बीच इनके भावार्थ को समझाने की कोशिश किए जाने पर सवाल उठने तय हैं। लेकिन, जब समाधान यात्रा पर निकले सुशासन बाबू से इस बाबत सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि, मुझे इस बारे में कुछ मालूम नहीं।
बिहार के शिक्षा मंत्री से नाराज हुए कुमार विश्वास
कवि समाज तुलसीदास को अपना पूर्वज और राम को मर्यादापुरुषोत्तम मानता है। लिहाज़ा, कवि कुमार विश्वास ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से फौरन अपील कर डाली कि वो चंद्रशेखर को अपने संगठन और सरकार से बाहर कर दंडित करें या फिर उन्हें माफी मांगने को कहें। कुमार विश्वास ने राम के बारे में समझ बढ़ाने के लिए उन्हें अपनी रामकथा में आने का न्योता भी दिया, और साथ ही एक सवाल भी पूछ लिया।
”क्या वे किसी दूसरे धर्म की किसी मानद पुस्तक पर ऐसी बात कह सकते थे? और कहने के बाद मंत्री छोड़िए क्या उनके बचे रहने की संभावनाएं बन सकती थीं। कितना कष्ट होता अगर वो ऐसा बोल देते। तो किसी की सहिष्णुता को किसी की सहृदयता को लाचारी समझ लेना ये बड़ी ख़राब बात है।”
कुमार विश्वास ने तो यहां तक कह दिया कि रामचरितमानस के बारे में वही व्यक्ति ऐसा कह सकता है, जिसके दिमाग में ज़हर भरा हो। जबकि बीजेपी के नेताओं ने भी चंद्रशेखर के बयान का गलत ठहराया।