कर्नाटक (Karnataka) में कांग्रेस की नई सरकार (Congress New Government) विराजमान हो गई है। सिद्धारमैया (Siddaramaiah) ने सीएम (CM) की कुर्सी संभाली है और डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) को डिप्टी सीएम (Deputy CM) पद पर संतोष करना पड़ा है। वैसे तो सबकुछ सामान्य रूप से चला। भव्य रूप से शपथ ग्रहण समारोह (Oath Ceremony) हुआ, सीएम के साथ मंत्रियों (Ministers) ने शपथ ली। मंत्रिमंडल में जातिवादी-क्षेत्रगत सभी समीकरण साधने की कोशिश हुई। मगर वो एक तस्वीर नहीं दिखी, जिसके दर्शन कराने के लिए कांग्रेस ने पूरा दम लगाया था। वो तस्वीर थी महागठबंधन (Grand Alliance) की।
शपथ ग्रहण समारोह (Oath Ceremony) के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Congress National President Mallikarjun Kharge) ने उस सभी विपक्षी दलों (Opposition Parties) को न्योता भेजा था, जो समान विचारधारा के हैं। खबर है दिग्गज नेताओं को मल्लिकार्जुन खरगे ने खुद फोन भी किया था। शायद कांग्रेस कर्नाटक से बीजेपी को 2024 के लिए मजबूत महागठबंधन (Strong Grand Alliance) की तस्वीर दिखाना चाहती थी। इससे कांग्रेस एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश में थी। एक तो कर्नाटक के मंच पर विपक्षी एकता का शक्ति प्रदर्शन और दूसरा महागठबंधन की कमान कांग्रेस के हाथ होने का संदेश। मगर कांग्रेस का ये प्रयोग बुरी तरह फेल हो गया। समारोह में न तो पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) आईं और न ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)। बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने भी दूरी बनाई तो महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) भी नदारद रहे।
कांग्रेस के बुलावे पर विपक्ष के न आने के क्या मायने?
कांग्रेस की कोशिश थी कि 2018 जैसी तस्वीर दोहराई जा सके। साल 2018 में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह विपक्ष ने अपनी एकता का दम दिखाया था। तब मंच पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार,अखिलेश यादव, मायावती, अजित सिंह, तेजस्वी यादव, सीताराम येचुरी, एन चंद्रबाबू नायडू जैसे विपक्ष के दिग्गज नेता मौजूद थे।
कांग्रेस को उम्मीद थी कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ इस बार भी वैसी ही तस्वीर सामने आएगी। मगर ऐसा हुआ नहीं। तो क्या विपक्षी दलों ने कांग्रेस के बुलावे पर न आकर ये संदेश दिया है कि उन्हें कांग्रेस की अगुवाई (Leadership) मंजूर नहीं है? क्या राहुल गांधी का नेतृत्व विपक्षी दल पचा नहीं पा रहे हैं? क्योंकि दिल्ली में कई बार मुलाकातों का दौर चल चुका है। मगर बात नहीं बन पाई है।
कितनों की आंखों में प्रधानमंत्री बनने का सपना ?
हालांकि कई विपक्षी नेताओं ने शपथ ग्रहण समारोह में हाजिरी लगाई भी है। बिहार के सीएम नीतीश कुमार, RJD नेता तेजस्वी यादव, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन,फारूक अब्दुल्ला, शरद पवार, सीताराम येचुरी जैसे कई नेता समारोह में शामिल हुए थे। मगर क्या ये वाकई कांग्रेस से जुड़ाव का असर था या फिर सिर्फ हाजिरी लगाना भर था? ये सवाल इसलिए नीतीश कुमार खुद दिल्ली दौड़ लगा-लगाकर जिस तरह विपक्षी नेताओं को एकजुट करने की कोशिश में जुटे रहते हैं। सियासी पंडितों को उससे उनकी आंखों में विपक्ष की अगुवाई करने और पीएम बनने का सपना नजर आ जाता है। नीतीश कुमार की भागम-भाग के दौरान भी कई नेता ऐसे दिखे जो नीतीश के नाम पर भी कतराते नजर आए। यानि ऐसी ना जाने कितनी ही आंखें हैं जिनमें विपक्षी दलों का अगवा बनने और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने का का सपना तैर रहा है।