यूक्रेन युद्ध शुरु होने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) की पहली रूस (Russia) यात्रा ने दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींच रखा है। मॉस्को (Moscow) की तीन दिवसीय यात्रा सोमवार (20 मार्च) को शुरू हुई और बुधवार को समाप्त होगी। चीन के विदेश मंत्रालय ने शी की यात्रा को ‘शांति की यात्रा’ करार दिया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक शासन में सुधार और दुनिया के विकास और प्रगति में योगदान देना है। इस बीच चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि शी की यात्रा मित्रता, सहयोग और शांति की यात्रा है। चीन ने यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाने की पेशकश की है। यूक्रेन संकट पर बोलते हुए वेनबिन ने कहा कि, चीन यूक्रेनी संकट पर अपनी उद्देश्य और निष्पक्ष स्थिति रखेगा और शांति वार्ता को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभाएगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या शी जिनपिंग की मॉस्को यात्रा रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने में मदद करेगी? चीन और रूस दोनों के लिए ये यात्रा महत्वपूर्ण क्यों है?
यूक्रेन संकट टालने की कोशिश करेंगे जिनपिंग?
जानकारों के मुताबिक जिनपिंग और पुतिन (Vladimir Putin) व्यापार को मजबूत करने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। ऊर्जा के क्षेत्र और अपनी मुद्राओं में व्यापार करने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत होगी। जबकि, दोनों नेताओं के 2030 तक रूस-चीन आर्थिक सहयोग पर एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करने की भी उम्मीद है। रूस-यूक्रेन संघर्ष र शी जिनपिंग अपने देश के स्थिति को एक बार फिर साफ कर सकते हैं, ताकि बीजिंग यूक्रेन संकट को सुलझा सके। 24 फरवरी 2023 को जारी अपने स्थिति पत्र में चीन ने रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष विराम का आह्वान किया था। 12 सूत्री शांति प्रस्ताव में सीधी बातचीत और स्थिति में ढील देने की बात कही गई थी। हालांकि, अमेरिका (America) ने कहा है कि उसे उम्मीद है कि शी जिनपिंग संघर्ष पर चर्चा करने के लिए जेलेंस्की से संपर्क करेंगे।
शक की नज़र से देखी जा रही है जिनपिंग के युद्ध रोकने की कोशिश
चीन के साथ रूस (Russia) के घनिष्ठ संबंधों के कारण शी द्वारा शांति स्थापित करने के किसी भी प्रयास को पश्चिम द्वारा संदेह के रूप में देखा जाएगा। भले ही चीन ने सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करने का आह्वान किया है। दरअसल चीन कभी भी रूस का आलोचना नहीं करता। हाल ही में उसके विदेश मंत्रालय की ओर से बयान आया था कि यूक्रेन के साथ दूसरे देशों की वैध सुरक्षा चिंताओं का भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। अमेरिका ने पहले भी कहा है कि चीन रूस को हथियारों की आपूर्ति करने पर विचार कर रहा है। हालांकि, बीजिंग (Beijing) ने इस दावे का खंडन किया है।
बड़े ग्लोबल लीडर बनना चाहते हैं शी जिनपिंग
पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन खुद को वैश्विक मंच पर एक बड़े खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है। शी जिनपिंग ने इस महीने की शुरुआत में मध्य पूर्वी प्रतिद्वंद्वियों ईरान और सऊदी अरब के बीच तालमेल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शी चाहते हैं कि उन्हें वैश्विक मंच पर उन्हें एक ताकतवर राजनेता के रूप में देखा जाए, जिसका प्रभाव कम से कम अमेरिकी नेता के बराबर हो। इसके अलावा बीजिंग उन आलोचनाओं को टालने की उम्मीद कर रहा है कि उसने तटस्थ होने का दावा करने के बावजूद युद्ध में रूस का पक्ष लिया है। पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से कुछ हफ्ते पहले शी और पुतिन ने बड़ी साझेदारी की घोषणा की थी। जबकि शी ने पुतिन को अपना “प्रिय और पुराना दोस्त” कहा था। यही नहीं हाल ही में जब अंतरराष्ट्रीय अपराध कोर्ट ने पुतिन की गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था, तब भी चीन के विदेश मंत्रालय ने ICC का माखौल उड़ाया था। चीन ने कहा था कि ICC अपनी छिछालेदर करवाने पर तुला है। वैसे यूक्रेन युद्ध पर पश्चिम द्वारा रूस को अलग-थलग करने के साथ पुतिन को इस दोस्ती की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। ठीक उसी तरह जिस तरह रूस को भारत की ज़रूरत है।
पीएम मोदी से आगे निकलना चाहते हैं शी जिनपिंग!
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का कद जिस तरह पूरी दुनिया में बढ़ा है उससे शी जिनपिंग भी कहीं ना कहीं सकते में हैं। जानकारों का मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के स्टैंड न चीन को चौंका दिया है। चीन को लगने लगा है कि भारत के ताकतवर राष्ट्र के तौर पर खुद को स्थापित कर रहा है, जबकि नरेंद्र मोदी बड़े ग्लोबल लीडर बन चुके हैं। नरेंद्र मोदी तो कई मौकों पर यूक्रेन युद्ध को लेकर अपनी राय भी रख चुकी है। वो पुतिन को सामने कह चुके हैं कि युद्ध से नहीं बल्कि संवाद से संग्राम का हाल निकलता है। लिहाज़ा, शी जिनपिंग अब नरेंद्र मोदी से आगे निकलने की कोशिश में हैं। वो पुतिन का शांति का रास्ते पर लौटने के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका शायद ये मानना है कि अगर रूस जंग खत्म कर देता है तो इससे चीन और खुद उनका कद बढ़ जाएगा।