2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में बड़ी जीत हासिल करने और नरेंद्र दामोदर दास मोदी (Narendra Modi) से सीधा मुकाबला करने के लिए कांग्रेस (Congress) के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ताल ठोंक रहे हैं। अमेरिका (America) के तीन शहरों का दौरा तो मात्र एक ज़रिया है। राहुल गांधी देश के साथ पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि बीजेपी (BJP) का स्वर्णिम काल अब जाने वाला है। वो ये ज़ाहिर करना चाहते हैं कि 2024 के चुनावों में बड़ा उलटफेर होगा और बीजेपी सत्ता गंवा बैठेगी। हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी या कहें उनकी पार्टी ने बीजेपी को लेकर ऐसा दावा किया हो। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने कहा था कि मोदी की हार निश्चित है। लेकिन, तब जनता ने कांग्रेस के दावे को सिरे से खारिज करते हुए मोदी पर 2014 के मुकाबले और ज़्यादा भरोसा जताया था। ऐसे में सवाल ये है कि राहुल गांधी ने इस बार 2024 के चुनाव को लेकर ताल क्यों ठोंकी? राहुल गांधी को ऐसा क्यों लगता है कि ‘मोदी’युग का ढलान शुरु हो गया है? कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष को ऐसा क्यों लगता है कि उनकी पार्टी विपक्ष को एकजुट कर एक बार फिर सत्ता में लौटेगी?
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दूसरों की रणनीति के भरोसे कांग्रेस का लोकसभा रण ?
दरअसल, कर्नाटक चुनाव (Karnataka Election 2023) में मिली जीत से राहुल गांधी और उनकी पार्टी गदगद है। पीएम मोदी के धुआंधार प्रचार, गाली को हथियार बनाने की रणनीति, हनुमान जी को चुनावी मिशन बनाने से लेकर डबल इंजन सरकार जैसे बीजेपी के बमों को कांग्रेस ने डिफ्यूज किया उससे राहुल गांधी का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है। उन्हें लगने लगा है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है, उनके भाषणों में लोगों की दिलचस्पी घट रही है, देश का युवा उनसे कनेक्ट नहीं कर पा रहा, एक ठहराव सा आ गया है जिसे लोग बदलाव के ज़रिए गति देना चाहते हैं। लिहाज़ा, कांग्रेस या कहें गांधी परिवार ने दूसरे दलों की चुनावी रणनीतियों में से वोट हासिल करने की प्रमुख रणनीतियों को आत्मसात कर लिया है, और उन्हीं के बूते वो आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने की हुंकार भर रही है। उदाहरण के तौर पर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) यानि आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की मुफ्त वाली स्कीम, जिसने दिल्ली (Delhi) व पंजाब (Punjab) में पार्टी को छप्पड़ फाड़ जीत दिलाई और उन्हें देश की राजनीति में एक अहम शक्ति के तौर पर स्थापित कर दिया। इसके अलावा कथित तौर पर ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) का मुस्लिम तुष्टीकरण, जिसने उन्हें पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजनीति का महारथी बना दिया।
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इन सवालों का कांग्रेस के पास क्या है जवाब ?
अब सवाल ये है कि किराए की रणनीतियों से कांग्रेस को फायदा कितना होगा और क्या वाकई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता घटती जा रही है? एक चुनाव यानि कर्नाटक में हिट हुई रणनीति से कांग्रेस 2024 में भी बाज़ी मार पाएगी?इसके लिए ज़रूरी है पिछले लोकसभा चुनाव का गणित और वोटों के बंटवारे को समझना। पिछले लोकसभा चुनाव में भी लगभग वही मुद्दे थे, जो आज हैं। लेकिन, फिर भी कांग्रेस को यकीन है कि इस बार सिक्का उसी का चलेगा। सबसे पहले आपको समझाते हैं कांग्रेस के इस यकीन के पीछे की वजहें क्या हैं।
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2024 में जीत को लेकर क्यों दंभ भर रहे हैं राहुल गांधी ?
1 - मुफ्त वाली योजनाएं बनेंगी जीत की गारंटी ? कर्नाटक चुनाव में चला मुफ्त वाला दांव कांग्रेस को बहुत रास आ रहा है। वो दिल्ली में आम आदमी पार्टी के इस फार्मूले को लोकसभा चुनावों में भी आज़माने की तैयारी कर रही है। मुफ्त की योजनाओं को अपने घोषणापत्र का हिस्सा बनाकर कांग्रेस जनता का भरोसा जीतना चाहेगी। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत में 200 यूनिट बिजली मुफ्त, सस्ते सिलेंडर जैसे मुद्दे अहम रहे थे। पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का वादा भी काम आया था।
2 - हिंदू वोटों के बंटवारे से फायदे की उम्मीद कांग्रेस को अच्छी तरह पता है कि बीजेपी की ताकत हिंदू वोटों का एकीकरण है। सीधे शब्दों में कहें तो बीजेपी ने हिंदुओं को एक किया और सत्ता में आई। लेकिन, कांग्रेस हिंदुओं को एक बार फिर जातियों में उलझा कर अपना वोटबैंक बढ़ाना चाहती है। इसके कई उदाहरण भी हैं। कर्नाटक में उसके द्वारा उम्मीदवारों का चयन, सीएम और डिप्टी सीएम के साथ मंत्रियों का चयन और अलग-अलग समुदायों, विशेष तौर पर पिछड़े व शोषित वर्ग का चुनाव प्रचार में बार-बार उल्लेख करना।
3 - मुस्लिम वोटों पर कब्ज़े की रणनीति बीजेपी को हिंदू वोट तो मिलते हैं, लेकिन मुस्लिम ना के बराबर। जबकि कांग्रेस मुस्लिमों को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिमों का है, ये बयान भी कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से ही आया था। लेकिन, वक्त बीतने के साथ मुस्लिमों का झुकाव दूसरी पार्टियों की ओर बढ़ता गया और वो देश की सबसे पुरानी पार्टी से दूर होते गए। मसलन, यूपी में समाजवादी पार्टी और बीएसपी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, केरल में सीपीएम, तमिलनाडु में डीएमके, तेलंगाना में AIMIM वगैराह ने कांग्रेस से उसका वोटबैंक छीन लिया। अब राहुल गांधी और उनकी पार्टी उसी वोट बैंक को क्षेत्रीय छत्रपों से छीनकर अपने पाली में करना चाहती है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने 15 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था जिनमें से 9 जीत कर विधानसभा पहुंचे।
4 - रीजनल पार्टियों की लीडर बनने की तैयारी कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को पीछे छोड़ेगी, तभी वो बीजेपी को टक्कर दे पाएगी। आलाकमान को ये बात समझ में आ चुकी है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा की पार्टी JDS को अपने ही गढ़ में पीछे धकेल दिया। बीजेपी का सबसे मजबूत लिंगायत वोट बैंक बिखरा, जबकि जेडीएस का वोक्कालिगा वोट बैंक बिखरा। जेडीएस से बिखरा वोट कांग्रेस के खाते में गया। इसी तरह पूरे देश में कांग्रेस जातीय राजनीति के समीकरण को साधकर 2024 में सत्ता के सबसे बड़े सिंहासन पर काबिज़ होने की कोशिश करेगी। कांग्रेस कोशिश करेगी कि वो चुनाव से पहले क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लेकर आए और चुनाव के बाद खुद को उनका लीडर बताकर धीरे से सत्ता पर काबिज हो जाए। इसके लिए कांग्रेस रीजनल पार्टीज़ को लुभावने ऑफर भी दे सकती है।
5 - नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमलों से फायदा कर्नाटक चुनाव से साबित हो गया कि नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी से कांग्रेस को अब नुक़सान नहीं होने वाला। दरअसल, कांग्रेस को लगता है कि पीएम मोदी 9 साल से सत्ता में है और जनता चाहती है कि उनसे भी सवाल पूछे जाएं। ऐसे में कांग्रेस ने इसे वोट बैंक की तरह भुनाने की रणनीति तैयार की है। कर्नाटक चुनाव की ही तरह अब वो पीएम मोदी की लगातार पर्सनल अटैक कर रही है। अलग-अलग मंचों से कांग्रेस पीएम को घेरने और उनकी ईमानदार वाली छवि को धूमिल करने की कोशिश कर रही है। एक बहुत छोटा सा उदाहरण है कि, कांग्रेस लगातार ये नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है कि पीएम मोदी सिर्फ अपनी कहते हैं, किसी की सुनते नहीं हैं। उसने मोदी के हाथों नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार भी इसी वजह से किया। कांग्रेस चाहती थी कि इसके ज़रिए वो जनता को ये समझा सके कि मोदी डिक्टेटर हैं और अपने आगे किसी की नहीं चलने देते।
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राहुल गांधी के सामने 2024 में कितनी चुनौतियां ?
1 - जनता के बीच अपनी छवि को बदल पाएंगे राहुल गांधी ? 2024 के लिए कांग्रेस ने रणनीति तैयार कर ली है और राहुल गांधी बीजेपी को हराने की हुंकार भर रहे हैं। लेकिन, ये इतना आसान भी नहीं है। राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी खुद की छवि है। जनता के बीच उनकी छवि एक ऐसे नेता की है जो सांसद तो बन सकता है लेकिन देश का पीएम नहीं। हालांकि, हिमाचल और कर्नाटक चुनावों के ज़रिए राहुल गांधी ने अपनी छवि को बदलने की कोशिश की है, लेकिन अब भी देश का एक बहुत बड़ा तबका ये मानता है कि वो अच्छे नेता हो सकते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री पद के उपयुक्त नहीं।
2 - राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर बंटे विपक्षी दल राहुल गांधी को उनकी पार्टी पीएम के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है। पार्टी के स्टैंड से साफ ज़ाहिर हो रहा है कि वो राहुल को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने के लिए तत्पर है। लेकिन, कांग्रेस के लिए विपक्षी दल रोड़ा साबित हो रहे हैं। कई क्षेत्रीय दल और उनके नेता राहुल गांधी को पीएम के तौर पर देखना पसंद नहीं करते क्योंकि इसमें उनका खुद का स्वार्थ भी छिपा है। इन नेताओं में ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शामिल हैं।
3 - वोटों का अंकगणित बिगाड़ सकता का प्लान राहुल गांधी या कहें कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती वोटो का अंकगणित है। अगर कांग्रेस को सत्ता में आना है और क्षेत्रीय दलों को राहुल गांधी के नेतृत्व तले खड़ा होने को मजबूर करना है तो उसे मौजूदा सीटों से लगभग चार गुना अधिक सीटें लानी होंगी। जबकि बीजेपी को 272 के जादुई आंकड़े से दूर रखना होगा। लेकिन, कांग्रेस के लिए ऐसा करना मुश्किल बहुत मुश्किल होगा। यूपी में उसे दिक्कत होगी जहां 80 लोकसभा सीटों पर उसे बीजेपी और समाजवादी से टकराना होगा। इसी तरह उत्तर भारत के राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और पश्चिम में गुजरात, महाराष्ट्र वगैराह में कांग्रेस के लिए सीटें हासिल करना आसान नहीं होगा।
4 - राजस्थान में सचिन पायलट कर रहे हैं परेशान राहुल गांधी और उनकी पार्टी के सामने लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान में छिड़ा सियासी रण भी मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। सचिन पायलट के आक्रामक तेवर और विद्रोही भाव कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं। अगर सचिन पायलट पार्टी से अलग हुए तो ये पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा। एक बड़ा वोट बैंक खिसकने के साथ पार्टी के अंदरूनी संविधान को लेकर सवाल उठने लगेंगे। इसका सीधा फायद बीजेपी को होगा, जो इसे कांग्रेस का परिवार राज बताएगी और चुनावी मुद्दे के तौर पर इसका इस्तेमाल करेगी।
5 - विवादित बयानों से लग सकता है झटका कांग्रेस के पुराने नेता अक्सर चुनावों के वक्त कोई ऐसा विवादित बयान दे देते हैं जो पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित होगा। राहुल गांधी और पार्टी के नेतृत्व के सामने ऐसे बयानवीर नेताओं की जुबान पर लगाम लगाने की चुनौती होगी। हालांकि, अभी से कई कांग्रेसी नेता अपने तेवरों से ज़ाहिर करने लगे हैं कि वो मानने वाले नहीं हैं। कुछ नेता तो अपनी ही पार्टी के स्टैंड के विपरीत भी बयान दे रहे हैं।
6 - सॉफ्ट हिंदुत्व से बीजेपी को हराना मुश्किल कांग्रेस मुसलमानों के वोट साधने में जुटी है, तो साथ ही साथ सॉफ्ट हिंदुत्व और जातिवाद की राजनीति को हवा दे कर बीजेपी के किले में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है। लेकिन, उसके सामने चुनौती है कि हिंदू वोटर्स का भरोसा जीतना। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने की एक बड़ी वजह हिंदुओं का एकजुट होना था। वो हिंदू जो दशकों से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस उन हिंदुओं को दोबारा अपने पाले में ला पाएगी। हिंदुओं का एक वर्ग तो कांग्रेस को वोट दे सकता है, लेकिन एक बहुत बड़ा तबका जो नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं के विचारों से प्रभावित है, वो शायद कांग्रेस का हाथ ना थामे।