Saturday, July 27, 2024
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Modi Surname Defamation Case: राहुल गांधी को सूरत कोर्ट से झटका, सजा पर नहीं लगी रोक, जानिए क्यों आई जेल जाने की नौबत, कहां-कहां चूके राहुल

मोदी सरनेम मानहानि केस (Modi Surname Defamation Case) में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul gandhi) को सूरत कोर्ट (Surat court) से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने राहुल गांधी (Rahul gandhi) की अर्जी खारिज कर दी है। राहुल गांधी (Rahul gandhi) ने निचली अदालत की सुनाई 2 साल की सजा को खारिज करने की मांग की थी। मगर कोर्ट का इस मांग को खारिज कर देना राहुल गांधी (Rahul gandhi) के लिए बेहद ही बड़ा झटका है। क्योंकि कोर्ट आज अगर दोष और सजा पर रोक लगा देती तो राहुल गांधी की सांसद सदस्यता (MP Membership) बहाल हो सकती थी। मगर ऐसा नहीं हुआ तो अब सवाल ये है कि राहुल गांधी के पास विकल्प क्या है? साथ ही इससे भी बड़ा सवाल ये है कि ऐसी नौबत आई ही क्यों? राहुल गांधी से कहां-कहां चूक हुई, इसके बारे में बताएंगें, मगर सबसे पहले ये समझ लेते हैं कि अब राहुल गांधी के पास विकल्प क्या है? ये विकल्प राहुल गांधी को कितनी राहत दिला पाएंगे?

राहुल गांधी के पास अब कितने विकल्प?

राहुल गांधी के लिए अब रास्ता गुजरात हाईकोर्ट (Gujrat high court) का बचा है। राहुल गांधी को गुजरात हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखना होगा वो भी 3 दिन के अंदर। दरअसल राहुल गांधी की जमानत की मियाद 3 दिन में यानि 23 अप्रैल को खत्म हो रही है। कोर्ट ने राहुल गांधी की सजा को 30 दिन के लिए निंलिबत रखा और जमानत दे दी थी। ऐसे में राहुल गांधी के पास कोर्ट से राहत पाने के लिए कुछ ही घंटे का समय है। राहुल को हाईकोर्ट का रुख करना होगा और अगर हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिलती है तो फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जाना होगा।

23 अप्रैल तक राहत न मिली तो जेल जा सकते हैं राहुल

सेशंस कोर्ट ने 23 मार्च को राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई थी और इसी के साथ महीनेभर का समय भी दे दिया था।अगर राहुल गांधी को 23 अप्रैल तक राहत नहीं मिलती है तो उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। साफ है 23 अप्रैल से पहले राहुल गांधी को हाईकोर्ट जाना होगा।

राहुल गांधी के सिर पर मुसीबतें खड़ी हैं। मगर सवाल यहां ये भी है क्या ये मुसीबतें टाली नहीं जा सकती थी। कुछ बिन्दुओं पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि ये मुसीबतें मानों राहुल गांधी ने खुद मोल ली हैं। राहुल गांधी से लेकर उसकी लीगल टीम तक कई मोर्चों पर चूकी और फिर मात खा गई

नंबर 1-सजा के खिलाफ अपील करने में देरी

राहुल गांधी को जब सेशंस कोर्ट (sessions court) ने सजा सुनाई को राहुल गांधी से लेकर पूरी कांग्रेस इसके राजनीतिकरण में जुट गई। सियासी बिसात पर शह मात का खेलना अलग बात हैं, मगर जंग कानूनी हो तो सिर्फ सियासत से काम नहीं चलता। कानूनी मोर्चा छोड़ना राहुल गांधी को बड़ा भारी पड़ा। राजनीतिकरण के चक्कर में सजा के खिलाफ अपील करने में काफी देरी हुई। जब कन्विक्शन अनाउंस (conviction announcement) हुआ था, उसी दिन अपील की जानी चाहिए थी। उसी दिन अपील हो जाती तो राहुल गांधी की सदस्यता भी बच सकती थी।

नंबर 2- राहुल की लीगल टीम का कमजोर होमवर्क

हमारे देश का संविधान और सीआरपीसी का सिस्टम बहुत ही साफ है। जब भी किसी शख्स को आरोपी बताया जाता है, तो उसे सजा चाहे कम मिली हो या फिर ज्यादा, तुरंत कॉपी, सर्टिफाइड कन्विक्शन, जजमेंट ऑर्डर जैसे सारे पेपर दे दिए जाते हैं। मगर राहुल गांधी के मामले में ये सारे दस्तावेज रहने के बावजूद फौरन अपील फाइल नहीं की गई। जैसे कि आज भी हुआ जिला अदालत से राहत नहीं मिली तो भी फौरन हाईकोर्ट में अपील नहीं की। जबकि सलमान खान और निर्भया जैसे केस अच्छे खासे उदाहरण के तौर पर सामने हैं। सलमान खान को सजा के आर्डर की कॉपी आने से पहले ही आगे अपील कर दी गई थी। लीगल टीम का मजबूत होमवर्क इसे ही कहते हैं।

नंबर 3- राहुल को माफी सावरकर से जोड़नी पड़ी भारी

नेता अक्सर अपने भाषणों में ऐसा कुछ कह जाते हैं, जिस पर कई बार बड़े विवाद और फसाद खड़े हो जाते हैं। मगर नेताओं की एक माफी विवादों के सारे अंधड़ को शांत कर देती है। नेता कानूनी पचड़े में नहीं फंसते हैं। राहुल गांधी भी ऐसा ही कुछ कर सकते थे। मोदी सरनेम को लेकर भाषण के दौरान जो उन्होंने टिप्पणी की। उस पर वो माफी मांग सकते थे। मगर उन्होंने उल्टा ये कह दिया कि मैं सावरकर नहीं जो माफी मांग लूं। इस पर विवाद और बढ़ गया, उल्टा राहुल गांधी पर और केस भी लद गए। इस मामले में महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ राजनीतिक तनातनी हुई सो अलग। जिस शिवसेना के साथ कांग्रेस की सरकार चल रही है, उसे मुसीबत में डाल दिया।

नंबर 4- तालियों के शोर में संयम भूले राहुल गांधी

राहुल गांधी के सिर पर एक तरफ जेल जाने की तलवार लटक रही है, तो दूसरी तरफ राजनीतिक करियर दांव पर है। सांसदी तो गई ही है, साथ ही 2024 में भी चुनाव लड़ने के रास्ते बंद होते नजर आ रहे हैं। मगर उस वक्त राहुल गांधी ने ये सब नहीं सोचा, जब वो 2019 में चुनावी रैली के दौरान बेहद जोश में थे। कर्नाटक केकोलार में पीएम मोदी को कोस-कोसकर तालियां बटोरने की कोशिश कर रहे थे। तालियों के शोर में संयम खो बैठे और कह दिया कि ‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों होता है। राहुल गांधी को ये बयान इतना भारी पड़ा कि जिन दिनों में 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटना चाहिए था। उस समय में कोर्ट कचहरियों के चक्कर काट रहे हैं। राहत की उम्मीद में इस कोर्ट से उस कोर्ट दौड़ लगा रहे हैं।

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