पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने मंगलवार को बिहार सरकार द्वारा कराए जा रहे जाति सर्वेक्षण (caste survey) को सही ठहराया। कोर्ट ने जातियों के आधार पर सर्वे कराने के नीतीश सरकार (Nitish government) के खिलाफ लगाई गई याचिका को खारिज कर दिया। वहीं इस फैसले को चुनौती देने के लिए दूसरा पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट जाएगा। इससे पहले, पटना उच्च न्यायालय ने 4 मई को जाति-आधारित-सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी। ये फैसला बिहार में जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील दीनू कुमार, ऋतु राज और अभिनव श्रीवास्तव के साथ राज्य की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने अदालत के समक्ष पक्ष रखा। दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि, राज्य सरकार जातिय और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने कहा कि, सर्वेक्षण करने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जबकि, सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता पीके शाही ने कहा कि, जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर में सुधार के लिए सर्वे कराया जा रहा है।
जाति-आधारित सर्वेक्षण बिहार में एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बहुप्रचारित जाति सर्वेक्षण से उत्पन्न बाधाओं पर उनकी सरकार को घेरने के लिए विपक्षी बीजेपी की आलोचना की। वहीं सीएम पटना उच्च न्यायालय की रोक को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की अपील पर अंतरिम राहत देने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी (BJP) नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने जाति सर्वेक्षण की स्थिति के लिए सीधे तौर पर नीतीश कुमार सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने ये भी मांग की थी कि एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए, जिसके बाद कानून के माध्यम से जाति सर्वेक्षण की सुविधा के लिए राज्य विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया जाए।