कर्नाटक विधानसभा (Karnataka Assembly) की सभी 224 सीटों पर रुझान आ गए हैं। रूझानों से साफ पता चलता है कि कर्नाटक में बीते 38 सालों का ट्रेंड नहीं बदला। हर पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड जारी है। लेकिन, चुनावी पंडितों को चौंकाते हुए कांग्रेस (Congress) ने बड़ी जीत दर्ज की। एग्जिट पोल में तो पहले से अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस बहुमत हाासिल कर लेगी। लेकिन, 130 से ज्यादा सीटें हासिल करने को लेकर किसी ने भी नहीं सोचा होगा। पार्टी के लिए जहां ये जीत संजीवनी का काम करेगी तो वहीं बीजेपी (BJP) को गंभीर मंथन करना होगा। बीजेपी को छह महीने के भीतर दो झटके लगे हैं। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है।
कैसे हुई कांग्रेस की विजय और बीजेपी की पराजय ?
कर्नाटक में मुख्य लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रही। हालांकि, वर्ष 2004, 2008 और 2018 में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। जबकि, साल 2013 में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतीं और सरकार बनाई। इस बार बीजेपी को पूरी उम्मीद थी कि हर 5 साल में सरकार बदलने का ट्रेंड टूटेगा और कर्नाटक की जनता उसे दोबारा चुनेगी। यही नहीं बीजेपी ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को चेहरा बनाया, जिन्होंने उन्हें दी जा रही गालियों और कांग्रेस द्वारा बजरंग दल (Bajrang Dal) पर बैन लगाने के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बना दिया। लगभग हर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजरंगबलि और उन्हें दी जाने वाली गालियों का जिक्र करते दिखे। यही नहीं उन्होंने डबल इंजन सरकार के फायदे भी गिनवाए और केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक में किए गए विकास कार्यों का ब्योरा दिया। लेकिन, जनता ने चुनावों में बीजेपी को नकार दिया। सवाल ये है कि आखिर क्यों। आइए आपको इसके प्रमुख कारण बताते हैं।
1. बीजेपी की अंदरुनी कलह बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाए जाने के बाद से ही बीजेपी में अंदरूनी कलह की स्थिति पैदा हो गई। पार्टी आलाकमान ने इस कलह को दूर करने की कोशिश तो की लेकिन अंदर ही अंदर कई तरह के गुट बन गए। टिकट बंटवारे के बाद तो कई नेता नाराज़ हो गए और बागी हो गए। सांसद कुमारस्वामी, नेहरू ओलेकर, गोलीहट्टी शेखर और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी ने बीजेपी छोड़ दी। लक्ष्मण सावदी तो लिंगायत समुदाय से आते थे, लिहाज़ा उन्हें मनाने की कोशिश भी की गई, लेकिन वो नहीं माने। इस सबका फायदा कांग्रेस ने उठाया। कांग्रेस ने बीजेपी के बागियों को अपने साथ मिला लिया।
2 - बीजेपी पर भारी कांग्रेस की रणनीति बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे पर चल रही थी। हिंदू वोटों को एकतरफ करने की कोशिश के कहत के बजरंग दल पर प्रतिबंध को बात को चुनावी मुद्दा ना लिया था। लेकिन, कांग्रेस की रणनीति बीजेपी पर भारी पड़ी। कांग्रेस ने सबसे पहले 75 प्रतिशत आरक्षण का दांव चला और बीजेपी के हिंदुत्व कांर्ड को फेल कर दिया। कांग्रेस ने आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का वादा किया जिससे ना सिर्फ दलित, ओबीसी बल्कि लिंगायत वोटर्स को अपने पाले में करने में सफलता हासिल की। वहीं दूसरी तरफ पार्टी ने मुस्लिम समुदाय को खुद करने के लिए बजरंग दल पर बैन की बात कर दी। इससे हुआ ये कि मुस्लिम समुदाय का लगभग एकमुश्त वोट कांग्रेस को मिल गया। जेडीएस को भी इस बार मुस्लिमों के वोट हासिल नहीं हुए।
3 - मल्लिकार्जुन खरगे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव से पहले मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। गौर करने वाली बात ये रही कि इसके पीछे कांग्रेस की अपनी रणनीति थी। दरअसल, मल्लिकार्जुन खरगे कर्नाटक के दलित समुदाय से आते हैं। ऐसे में एक दलित के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कर्नाटक के लोग भावनात्मक रूप से पार्टी से जुड़ते चले गए। दलित वोटर्स में तो इसका सबसे ज़्यादा असर हुआ। दलित समुदाय के लोग कांग्रेस के साथ खड़े हो गए। खरगे की चुनावी रैलियों में जुटी भीड़ इसका प्रमाण है कि उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना पार्टी के लिए चुनाव में कितना फायदेमंद साबित हुआ।
4 - राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से जम्मू कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी। इस यात्रा में राहुल गांधी ने सबसे ज़्यादा समय कर्नाटक में ही गुजारा। यात्रा के माध्यम से उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस को मजबूत किया। अंदरूनी लड़ाइयों और आपसी खींचतान को खत्म किया। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को एकसाथ लेकर आए। नतीजा ये हुआ कि गुटबंदी सिर ना उठा सकी। पार्टी के सभी नेताओं ने एक साथ मिलकर चुनावी रैलियां की और रणनीति के तहत काम किया।
5 - बीजेपी से नाराज लिंगायत समुदाय उम्र और पार्टी के नियम के अनुसार बीजेपी ने येदियुरप्पा को कुर्सी से हटा दिया। हालांकि, बीजेपी ने उन्हें पार्टी का चेहरा बनाए रखा। लेकिन, सीएम तो बोम्मई को बनाया गया। चुनावी जानकारों की मानें तो येदियुरप्पा को किनारे किए जाए से लिंगायत समुदाय बीजेपी आलाकमान से नाराज़ हो गया। लिंगायत समुदाय ने बीजेपी की जगह कांग्रेस को अपना वोट दिया। इससे बीजेपी को तगड़ा नुकसान हुआ, जबकि बिना कुछ किए लिंगायत वोटर्स कांग्रेस के पाले में चले गए। 73.10 प्रतिशत रिकॉर्ड मतदान हुआ, मतलब ये कि कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए वोट पड़े, जिसमें एक बड़ा किरदार लिंगायत समुदाय ने अदा किया।