अमेरिकी सेना, खुफिया एजेंसियां और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों एक घातक वायरस (Virus) को ढूंढने में लगे हैं। ये वायरस एक तरह का कंप्यूटर कोड (Computer Code) है जो किसी भी तंत्र को तहस-नहस कर सकता है। अमेरिका का आरोप है कि ये घातक कंप्यूटर कोड किसी और की नहीं बल्कि चीन की शैतानी का नमूना है। बाइडन प्रशासन (Biden Administration) के मुताबिक संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर में सैन्य अड्डों को बिजली देने वाले पावर ग्रिड, संचार प्रणालियों और जल आपूर्ति को नियंत्रित करने वाले नेटवर्क के अंदर चीन ने इस वायरस या कहें कंप्यूटर कोड को फिट कर दिया है। अगर युद्ध जैसे हालात पैदा होते हैं तो चीन (China) अपने दुश्मन यानि अमेरिका (America) से किसी भी ऑपरेशन को ठप कर सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन आने वाले वर्षों में ताइवान के खिलाफ कदम उठाना चाहता है, इसीलिए मैलवेयर (वायरस) का इस्तेमाल कर रहा है।
अमेरिकी कांग्रेस के एक अधिकारी के मुताबिक ये कंप्यूटर कोड एक टाइम बम की तरह है जो चीन को अमेरिकी सैन्य तैनाती को बाधित या धीमा करने, या फिर अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर बिजली, पानी और संचार में कटौती करके संचालन को फिर से शुरू करने की ताकत दे सकता है। इसका प्रभाव कहीं अधिक व्यापक हो सकता है, क्योंकि अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, वही बुनियादी ढाँचा अक्सर आम अमेरिकियों के घरों और व्यवसायों की आपूर्ति करता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी सरकार घातक चीनी कोड की तलाश करने और इसे खत्म करने की कोशिश में जुटी हुई है। वहीं ये भी दावा किया की जब से चीन के वायरस (Chinese Malware) का पता चला है तब से व्हाइट हाउस (White House) में बैठकों का दौर चल रहा है। अमेरिकी सेना के सीनियर अधिकारी, इंटेलिजेंस चीफ और नेशनल सिक्योरिटी से जुड़े अधिकारी लगातार माथापच्ची कर रहे हैं।
साइबर वॉरफेयर (Cyber Warfare) या कहें साइबर अटैक करने में चीन कई देशों को पीछे छोड़ चुका है। साथ ही उस पर साइबर अटैक करने के आरोप भी लगते रहे हैं। कुछ वर्षों पहले भारत (India) में हुए साइबर अटैक (Cyber Attack) के मामले में चीन को ही दोषी ठहराया गया था। 2015 में राज्यसभा भारत के तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री ने बताया था कि भारत की साइबर सिक्योरिटी (Cyber Security) को सबसे ज़्यादा चीन से ही खतरा है। दरअसल, चीन के हैकर्स भारत के बड़े संस्थानों को टारगेट कर रहे हैं। तो अब उनके निशाने पर अमेरिका भी आ गया है। वर्ष 2013 में पहली बार चीन की सेना ने साइबर वॉरफेयर को सार्वजनिक रूप से अपनी रणनीति का हिस्सा बनाया।