चीन की चाटुकारिता करने वाले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने खुलकर भारत विरोधी फैसले लेने शुरु कर दिए हैं। चीन से सीख-पढ़कर आए इस्लामी कट्टरपंथ के झंडाबरदार मोहम्मद मुइज्जू ने सबसे पहले मालदीव पहुंचते ही प्रेस कॉन्फ्रेंस की। गौर करने वाली बात ये रही कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने भारत का नाम लिए बगैर कहा कि, '' हम छोटे देश जरूर है लेकिन कोई हमपर धौंस नहीं जमा सकता।'' महाशय मुइज्जू यहीं नहीं रुके, उन्होंने ये भी कहा कि, ''पिछली सरकार अपनी हर योजना के लिए एक देश पर निर्भर रहती थी।'' इसके बाद मुइज्जू की सरकार ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब किया और मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों को 25 मार्च तक लौटने का अल्टीमेटम दे दिया। मालदीव की सरकार ने भारत पर अपनी निर्भरता कम करने से जुड़े फैसले लेने भी शुरु कर दिए।
He is determined to ruin #Maldives and push it into a Chinese debt trap. Reporters should ask him to show when and how did India at Govt level ‘bullied’ them, as he accuses?
मालदीव के राष्ट्रपति का भारत विरोधी बयान/ सौजन्य. @ssaratht
कट्टर इस्लामी देश से अनाज लेगा मालदीव
5 लाख 21 हज़ार की आबादी वाला देश मालदीव भारत पर मुख्य रूप से दवाईयों, अनाज, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्भर है। लेकिन, अब चीन के कहे मुताबिक चल रहा मालदीव धीरे-धीरे खुद को भारत से अलग करने लगा है। वो भारत पर अपनी निर्भरता कम करने के बहाने चीन और तुर्की का नीतिवाहक बन गया है। मुइज्जू की सरकार ने फैसला किया है कि वो तुर्की से खाद्यान आयात करेगा। इसके लिए मालदीव की सरकार ने तुर्की के साथ एक समझौता भी किया है। मुइज्जू ने चीन से लौटने के बाद एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, ''तुर्की के साथ एक साल के लिए पर्याप्त चावल, आटा और दूसरी खाद्य वस्तुओं के लिए समझौता किया गया। तुर्की से आटे की पहली खेप फरवरी में आ भी जाएगी।'' गौरतलब है कि पीपुल्स नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव का राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले तुर्की की यात्रा की थी। जबकि उनसे पहले तक मालदीव के राष्ट्रपति पहली विदेश यात्रा के तौर पर भारत ही आया करते थे।
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन
भारत से दवाएं भी आयात नहीं करेगा मालदीव
भारत दवा निर्माण में अग्रणी देशों में शामिल है। भारत की दवाईयां पूरी दुनिया में भेजी जाती हैं। ये दवाईयां ना सिर्फ सस्ती होती हैं बल्कि दूसरे देशों की दवाईयों से ज़्यादा कारगर भी होती हैं। अबतक मालदीव भी भारत में बनी दवाईयों का इस्तेमाल करता आया है। लेकिन, वहां की कट्टरपंथी सरकार ने फैसला किया है कि वो यूरोप और अमेरिका से दवाईयां आयात करेगी। मोहम्मद मुइज्जू ने कहा कि, ''इस फैसले से मालदीव को सस्ती दवाईयां मिलेंगी और देश को सीधे वहां से दवाएं मिलेंगी जहां उनका निर्माण होता है।'' यही नहीं भारत विरोध में पगलाए मोहम्मद मुइज्जू ने इस बात का भी ऐलान किया है कि उनकी सरकार मालदीव के नागरिकों के लिए चिकित्सा उपचार को कवर करने वाली सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना का विस्तार करने जा रही है। अब मालदीव के लोग थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात जाकर अपना इलाज करवा पाएंगे। गौरतलब है कि मौजूदा समय में ये योजना भारत और श्रीलंका के अस्पतालों में उपलब्ध है।
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू
चीन से यारी पड़ेगी मालदीव पर भारी
अक्सर इंटरनेट की वजह से वास्तविक मुद्दे दम तोड़ देते हैं, जबकि कई ऐसे मुद्दे उठ खड़े होते हैं जिनसे फायदा कम और नुकसान ज़्यादा होता है। मालदीव को भी अपने देश की कूटनीति को इंटरनेट पर उछालना महंगा पड़ सकता है। खासतौर पर तब जब वो भारत का हाथ झटक कर चीन जैसे विस्तारवादी मुल्क की गोद में खेल रहा है। मालदीव को श्रीलंका का हाल देख लेना चाहिए। श्रीलंका ने भी भारत की जगह चीन को तरजीह दी थी। नतीजा ये हुआ कि श्रीलंका आर्थिक तौर पर बर्बाद हो गया। वो चीन के कर्ज़जाल में फंस गया। जब श्रीलंका को अक्ल आई तो उसने दोबारा भारत की ओर रूख किया। आज श्रीलंका को पटरी पर लाने का काम भारत ही कर रहा है। भारत ना सिर्फ श्रीलंका को आर्थिक मदद मुहैया करा रहा है बल्कि उसे चीन के कर्ज़जाल से बाहर निकालने के लिए हर संभव मदद भी कर रहा है। अब अगर मालदीव की बात करें तो उसकी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है। वहीं की जीडीपी का करीब 28 प्रतिशत हिस्सा टूरिज्म का है। जबकि फॉरेन एक्सचेंज में भी करीब 60 फीसदी योगदान पर्यटन उद्योग का है। ऐसे में अगर वो भारत से दूर होता है तो भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। लेकिन, क्षेत्रफल में दिल्ली से भी कहीं छोटा ये देश रिस्क उठाने को तैयार है। दरअसल, उसे लगता है कि चीन उसे संभाल लेगा। लेकिन, मालदीव को यही नहीं पता कि चीन की अर्थव्यवस्था को लकवा मार चुका है। धीमी वृद्धि धर, बेरोजगारी और रियल एस्टेट सेक्टर में आई मंदी ने चीन की हालत पतली कर रखी है। 2024 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। ऐसे में वो मालदीव की मदद कितने दिन कर पाएगा इसका पता नहीं। वहीं बात करें भारत की तो संयुक्त राष्ट्र ने इस साल देश की अर्थव्यवस्था 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद जाहिर की है।