Saturday, July 27, 2024
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केजरीवाल की गिरफ्तारी पर भारत को अमेरिका और जर्मनी दे रहे थे ज्ञान। विदेश मंत्रालय ने लगा दी दोनों देशों की क्लास। जानिए क्यों भारत से चिढ़ने लगे हैं पश्चिमी देश

अमेरिका (America) की दूसरे देशों के आतंरिक मामलों में टांग अड़ाने की आदत बड़ी पुरानी है। लेकिन, बदलते वैश्विक समीकरणों और जरूरतों को देखते हुए भारत उसकी इस आदत पर अब टका सा जवाब भी दे देता है। ऐसा ही जवाब भारत ने अमेरिका को उस वक्त भी दिया जब उसने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की गिरफ्तारी को लेकर बयान जारी किया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता केजरीवाल की गिरफ्तारी पर निष्‍पक्ष, समयबद्ध और पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया की बात कही। जिसके बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि, ''हम भारत में कुछ कानूनी कार्यवाही के बारे में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता की टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताते हैं। कूटनीति में हम यह अपेक्षा करते हैं कि दूसरों की संप्रभुता और आंतरिक मामलों का सम्मान करें। साथी लोकतंत्रों के मामले में यह जिम्मेदारी और भी अधिक है। भारत की कानूनी प्रक्रियाएं एक स्वतंत्र न्यायपालिका पर आधारित हैं जो वस्तुनिष्ठ और समय पर परिणामों के लिए प्रतिबद्ध है। उस पर आक्षेप लगाना अनुचित है।'' भारत ने अमेरिका को जुबानी लताड़ लगाने के साथ दिल्ली में अमेरिका के मिशन की कार्यवाहक उप प्रमुख ग्लोरिया बर्बेना को भी तलब कर लिया। कहा जा रहा है कि लगभग 40 मिनट तक विदेश मंत्रालय ने बर्बेना की क्लास लगाई और इस मामले में जमकर खरी खोटी सुनाई। 

जर्मनी को भी भारत ने दिया करारा जवाब

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तानी के मामले पर दो दिन पहले जर्मनी (Germany) की ओर से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा था कि, ''हमने इस बात को नोट किया है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हम ये मानते हैं और आशा करते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से जुड़े मानक और बेसिक लोकतांत्रिक मूल्यों को इस केस में भी लागू किया जाएगा। जिस तरह कोई भी आरोपों का सामना करता है, केजरीवाल भी एक निष्पक्ष ट्रायल के हकदार हैं।'' जर्मनी के इस बयान पर भी भारत ने कड़ा ऐतराज दर्ज कराया था। शनिवार को जर्मन दूतावास के उप प्रमुख जॉर्ज एनजवीलर को भारतीय विदेश मंत्रालय ने समन भी किया था। भारत ने जर्मन डिप्लोमैट से सख्त लहजे में कहा था कि , ''वो इसे देश की न्यायिक प्रणाली में दखल के तौर पर देखता है।'' जबकि, इस पूरे मामले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए बताया था कि भारत ने जर्मन विदेश मंत्रालय की हालिया टिप्पणी को लेकर कड़ा विरोध जताया है। 

भारत की तरक्की से जलते हैं पश्चिमी देश!

सवाल ये है कि भारत (India) के आंतरिक मामलों में जर्मनी और अमेरिका जैसे देश हस्तक्षेप की कोशिश क्यों कर रहे हैं। दरअसल, ये दोनों ही पश्चिमी देश हैं, जिन्हें भारत की तरक्की रास नहीं आ रही। सबको पता है कि जर्मनी और अमेरिका की आर्थिक हालत खस्ता है। बेरोजगारी चरम पर है, और लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लिहाजा, ये देश भारत के पैर खींचने की कोशिश में जुटे हैं। अमेरिका भले ही भारत को अपना दोस्त कहता हो। लेकिन, उसे भी पता है कि भारत उसकी शर्तों पर दोस्ती की ये गठरी उठाकर घूमता नहीं रहेगा। कई मौकों पर भारत ने ये कहा भी है कि, अपने हित को देखते हुए उसे दोस्त चुनने का अधिकार है। खासतौर पर रूस से तेल आयात करने के लोकर भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका समेत उन तमाम पश्चिमी देशों की खिंचाई की थी जो खुद तो रूस से तेल और गैस ले रहे थे, लेकिन भारत को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे थे। 

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